DADIMA: STRONGEST WOMAN I SAW IN MY LIFE

I do not have much to write about my grandma. Here is a poem in Magahi, I wrote about my Grand ma some 2-3 years ago.  


दादी माँ, सुनअ नअ, 

एगो बात कहीवअ,

बहुत दिन से इ बात कहेके मन हेयअ,

कहीतअ न ही, 

लजयला नियन हो जाइत ही, 

बड़ी दिन से मन हे कि माथा रख के तोर गोदी में

खूब रोऊँ मन भर, 

साँस हो जाये भारी, चाहे गला सूख जाये, 

रोये के मन हे! 

काहे? तू पूछबअ हमरा मालूम हे, 

फिर एतना रोइते रोइते का जबाब बोलम हम, 

खुद हमरा न पता, 

तू भी रोये लगबअ, पता हे, 

साथ में दूनो दादी पोता, 

खूब रोये के, का? 

फिर मिल के सूजी के हलुआ बनाएल जाई, 

कहअ तअ हम ही बना देम,

लेकिन तू हीं बनईहअ न! 

हमर दादी माँ ए ग्रेड के हलुआ बनावअ हत! 

एही न हम अऊर सब दादी से कहअ हली! 

हम का बनती हल कुछो, जे तोर हलुआ न खईती हल! 

मिठास जे हल हलुआ के, आज हमर आवाज़ हे, 

सोन्ह सोन्ह हलुआ नियन बात करेके गुन तोर पोता में कैसे आयल? 

हमरा बना देलअ दादी माँ, बूढ़ाढ़ी में भी, माँ अईसन पाल देलअ, 

हमनी किहाँ कहाँ अईसन होवअ हे, 

कि तोरा पे कविता लिख के तोरा सुना देती हल, 

हम सुना न सकीं, लजा न जा हीवअ,

फिर रो देबवअ सामने तोहर, तोरो रोवे पड़तवअ, 

जाये दअ! बस अईसेंही एक दिन नौकरी लगे दअ एगो! 

मान लअ आईएस बन जबबअ न! 

कोई दिन अईसेंही कह देबवअ, 

"कि दादी माँ बना देलअ तू अऊ दादा जी हमरा!"

मिट्टी से सोना कर देलअ!

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