कहानियाँ कई हिस्सों को छूती हैं | डर, असुरक्षा, हत्या, इस तरह की प्रवृतियाँ मनुष्य के भीतर होती हैं | जब ये प्रवृत्ति कथाकार के दिल में पाई जाती है तो हमें कोई काफ़्का, कोई मंटो, कोई दोस्तोवेस्की देखने को मिलता है |
मेरी इस कहानी को आप कैसे पढ़ेंगे ये मैं आपको सलाह दे सकता हूँ | मैं इस कहानी को लिखा नहीं है | कहने का मतलब है, कि मैंने इस कहानी को रिपोर्ट किया है | मैं आँखों देखी बात बताने जा रहा हूँ | यानी ये कहानी खुद को कह रही है, मैं नहीं कह रहा इसको | तो आप भी पढ़िए मत| इसको ऐसे देखिए, कि ये कहानी खुद आपसे पढ़ ली जाए |
तीन दोस्त थे | अभिषेक, नीतेश, विभात | दसवीं के बाद, तीनों ने कोटा जाकर कोचिंग करने की सोची | इंजीनियरिंग की तैयारी करनी था तीनों को | अब खुद करनी थी या उनको ये सपना दिखाया गया था, ये विवाद का विषय है, और हम किसी वाद के समर्थक नहीं हैं! इसलिए विवाद के भी समर्थक नहीं हैं|
एक नामी गिरामी कोचिंग थी, "रिप्लेसमेंट कोचिंग" | बड़ी रहस्यमयी कोचिंग थी | हर साल वहाँ से टॉपर आते थे | और कोई प्रचार नहीं किया जाता था | और तो और, किसी को उस कोचिंग के प्रोसेस के बारे में कुछ नहीं पता था | एक सिक्रेट सोसाइटी की तरह काम करती थी रिप्लेसमेंट कोचिंग |
इसके पढ़े हुए बच्चे भी बाहर इसकी बड़ाई या बुराई नहीं करते थे | जैसे एक बार, विभात जो कि, बड़ा चिपकू सा अजीब सा लड़का था, अपने सिनियर रितेश कुमार मिश्रा से पूछ रहा था, जो अभी अभी छुट्टियां लेकर कोचिंग से लौटे थे, "बताओ ना भईया, कैसा होता है कोचिंग में, बहुत ज़बरदस्त पढ़ाते होंगे वो! है ना?"
रितेश भईया को सांप सूंघ गया | रितेश भईया बोले, हाँ हाँ! लेकिन छोड़ ना ये सब, कुछ और बात करते हैं | लोगों ने कितना चिढ़ाया रितेश भईया को | उनके दोस्त मज़ाक में उनको चाची कहते थे | दोस्त चिढ़ाया करते, "चाची, तू कोटा जाकर चाची की भीगी बिल्ली बन गयी रे! डरी डरी क्यों रहती है?" चाची भईया, रितेश भईया एक अजीब सी हँसी हँसते | ऐसी हँसी जिसमें एक डर शामिल होता है | जैसे डर छिपाते हुए हँसते हैं |
विभात ने नितेश, अभिषेक को बताया | नितेश बोला, "तो तुम चुतिया हो ना! काहे चेप होते रहते हो? जीने दो भई आदमी को!" अभिषेक नितेश ने बात टाल दी |
तीनों दोस्तों ने फॉर्म भर दिया | सेलेक्शन हो गया | वहाँ पढ़ने भी लगे |
कोचिंग की बिल्डिंग तो बहुत सुंदर थी | लेकिन अंदर बड़ा विचित्र था | सुरंग जैसी दीवारें! पूरी बिल्डिंग के भीतर, चींटियों के छत्ते जैसी थी | लोग एक रास्ते से जाते, तो दूसरे से निकलने वालों को देख भी नहीं पाते | कोचिंग के मालिक पंडित स्पर्धालाल ने बताया, कि ये छात्रों को distract होने से बचाने के लिए किया गया है | न छात्र इधर उधर देखेंगे, न distract होंगे |
इतना ही नहीं, छात्र cubicles में बैठ के online क्लास करते थे | वो cubicle हर बच्चे के बेडरूम से जुड़ा था | बेडरूम से क्लास आना है, क्लास से बेडरूम | खाना एक बड़े से पाईप से बेडरूम में करेक्ट टाईम पर आ जाती थी|
पूरी कोचिंग मानो, लार्वा development centre था | जहाँ future के इंजीनियर Metamorphosis के प्रोसेस से तैयार किये जाते थे |
तीनों भी एक दूसरे से कही महीनों तक नहीं मिल पाए | तीनों ने ये सोच लिया था कि सेलेक्शन चाहिए तो इतना तो सहना पड़ेगा | रात को डेली, स्पर्धालाल, एक घंटे मोटिवेशन भी तो देते थे |
विभात तीनों में सबसे आलसी था | वो मोटिवेशन लेक्चर लेते लेते सो जाता था | एक दिन मोटिवेशन लेक्चर लेते लेते, जब वो ऊंघ रहा था, जम्हाईं ले रहा था, कि उसके कानों में स्पर्धालाल की आवाज़ पहुंची |
स्पर्धालाल कह रहे थे, "आपसे मुझे मतलब ही नहीं है, मेरी डील हुई है, आपके माँ बाप से, हमें इंजीनियर घर भेजना है, आप बनो तो बढ़ियां, वरना इंजीनियर तो हम भेज ही देंगे आपके घर | विभात चौंका | ये क्या बात हुई, अगर हम नहीं बनेंगे, तो कौन जाएगा घर हमारे इंजीनियर बनके? कोई और? ये क्या बात हुई | विभात को वो स्टेटमेंट डरा गया | कभी कभी आप अचानक एक साधारण सी बात में छिपे गहरे अर्थ की अनुभूति कर लेते हैं | विभात ने रहस्य सुन लिया था | विभात पहली बार डरा | वो अपने बेडरूम में अकेला था | उसे घुटन होने लगी | उसने पहली बार अपने होने के बारे में सोचा | कहाँ है वो? एक बंकर में जहाँ न खिड़कियां है न दरवाज़ा | सिर्फ़ cubicle और बेडरूम | विभात अपने दोस्तों से मिलना चाहता था | विभात ने बेडरूम की दीवारों पर हाथ फेरा | भयंकर सन्नाटा | उसने चिल्लाया, नितेश....! अभिषेक...!
दीवार के उधर से आवाज़ आई, "विभात?" नितेश था उस साइड |
अभिषेक बोला, भाई हमलोग 8 महीने से एक दूसरे के बगल वाले रूम में हैं और हमको पता ही नहीं है | तीनो दोस्त एक दूसरे की बात सुन सकते थे | विभात ने बताया, कि स्पर्धालाल क्या बोल गया | अभिषेक बोला, अरे जोश जोश में बोल दिया होगा | तुम कामचोरी का बहाना मत ढूंढो |
नितेश भी वही बोला | विभात बोला, कि तुमलोग को दिख नहीं रहा | मधुमक्खी का छत्ता जैसा जगह में रह रहे हैं | दम नहीं घुट रहा तुम लोग का?
नितेश और अभिषेक गुस्सा हो गये | बहुत डाँटा विभात को | लास्ट में बोला, "भाग भोड़सी के!"
कुछ दिनों बाद, नितेश ने दीवार खटखटाया | विभात ने कहा, क्या हुआ? नितेश बोलता है, "भाई! तुम शायद ठीक बोल रहा है! उस दिन स्पर्धालाल की बात मैंने सुनी! स्पर्धालाल कह रहा था, आप कौन हैं? कमियों के भंडार! हम आपसे बेहतर बेटे बेटियां आपके माँ बाप को दे सकते हैं | आपकी किसको ज़रूरत है? आप Exam नहीं निकाल पाए तो याद रखना, you are easiest to be replaceable.
भाई मुझे बहुत डर लग रहा है भाई! विभात बोला | अभिषेक बोला, तुमलोग को बहाना चाहिए कामचोरी का | अभिषेक मानने को तैयार नहीं था | तीनों में सबसे ज़्यादा मेहनती वही था | अपने घर का दूलारा, मेहनती पढ़ने वाला बच्चा |
दिन बीतने लगे | एक दिन विभात को खुराफात सूझी | उसने नितेश को बताई | दोनों ने तय किया | क्या तय किया? बताता हूँ बताता हूँ | exciting बात है | दोनों ने तया किया कि इस बिलडिंग की दीवारे तोड़ देंगे | एक एक बच्चे तक पहुंचेंगे | पूरी बिल्डिंग की दीवारों में छेद कर डालेंगे |
" Replacement कोचिंग, तेरे में हम इतने छेद करेंगे, कि कनफ्यूज हो जाओगे, कि क्लास कहाँ पर लें, और बच्चे सुलाएँ कहाँ पे!" दोनों हँसे | बहुत दिन बाद |
चल तुम्हारी माँ का स्पर्धालाल!
बोल के दोनों ने replacement की दीवारें चोद डाली |
बच्चे कुछ गुस्सा होते, कुछ excited. Actually जिनमें बचपन बचा था वो excited होते थे, मुझे उनका नहीं पता जो गुस्सा होते | कुछ बच्चे तो दीवारें टूटने पर प्रतिक्रिया ही नहीं देते, और पढ़ने में लगे रहते | विभात उनसे हाय हलो करता | वो कुछ नहीं कहते | अजीब लोग | विभात और नितेश दिन रात लगे रहते |
Replacement की छतें हिला दी दोनों ने हफ़्ते भर में | एक दिन वो पहुंचे एक ऐसी दीवार के पीछे, जहाँ उन्हें कुछ ऐसी दिखा, जो देखकर वो पहले जैसे नहीं रहे |
देखते हैं, assembly line पर बच्चे बनाए जा रहे हैं | मैं बाल मजदूरी की बात नहीं कर रहा | मशीन थे बड़े बड़े | जो कि बच्चे manufacture कर रहे थे | नये नये बच्चे| ज़िंदा programmable बच्चे | बच्चे, जिनके दिमाग़ में circuits थे | और जो इंजीनियर बनने के लिए programmed थे |
नितेश ने एक ऐसे बच्चे पर गौर किया | उस पर विभात का चेहरा लगा था | वो सिर्फ़ ये कहे जा रहा था | "मुझे डर लग रहा है... मुझे डर लग रहा है!" विभात ने अभिषेक का clone देखा |
नितेश का भी क्लोन मिल गया | पूरी की पूरी कोचिंग एक क्लोनिंग मशीन थी, जहाँ सबके बेडरूम्स में कैमरा लगा था | कैमरे से उनकी बॉडी लैंग्वेज, उनके बात करने का तरीका, सारे डेटा प्वाइंट्स! सबकुछ कॉपी पेस्ट |
विभात और नितेश के डर की सीमा नहीं थी |
विभात भागा, बस वहीं उसे गार्ड ने देख लिया | साईरन बजने लगे | पीं पौं पी पौं पीं पौं...
दोनों भाग रहे थे, एक सुरंग से दूसरी सुरंग!
अभिषेक के रूम पर पहुँचे | अभिषेक था तो सही, पर वो वाला नहीं | अभिषेक कहता चला जा रहा था, "तुम लोग बस कामचोरी का बहाना ढूंढो | तुम लोग बस कामचोरी का बहाना ढूंढो |" He was replaced.
दोनों भाग रहे थे, अपने अस्तित्व के लिए | भागकर वो किसी तरह कोचिंग के front gate तक पहुँचे | वहाँ replacement coaching का बोर्ड लगा था | नीचे मोटो लिखा था, "Replacement coaching, where you are replaceable, but engineering is not!"
अब समझ आ रहा था, क्या मतलब है इसका | दोनों भाग रहे थे |
भाग कर किसी तरह वो एक अनजान जंगल पहुँचे | अनजान जंगल इतना घना था, कि कोई उधर नहीं जाता था | नितेश विभात, जंगल में जा घुसे | वहाँ उन्हें अभिषेक मिला | इस बार असली वाला | वो किसी तरह भाग आया था |
तीनों दोस्त रो रहे थे | डर और खौफ़ और suffocation से पहली बार बाहर आए थे |
डर के मारे, उन्होंने 2 साल, अनजान जंगल में बिताये | 2 साल बाद जब उनको लगा कि घर चलना चाहिए, तो वो गये |
मैं इस कहानी का अंत करने जा रहा हूँ |
विभात नितेश अभिषेक का दुनिया में कोई नहीं बचा है | वो वापिस जंगल लौट आए | क्यों लौट आए? जब वो अपने घर गये, तो पहले ही मशीनों से बना विभात, मशीनों से बना नितेश, मशीनों से बना अभिषेक अपने अपने घर deliver हो चुके थे | तीनों इंजीनियर | घरवालों को उनके इंजीनियर बेटे मिल गये थे |
ये सब देखकर, तीनों सोच नहीं पाए कि क्या महसूस किया जाए? दुःख? घृणा? दर्द? घुटन? जाने क्या क्या?
माँ बाप को भी जो बेटा चाहिए था, मिल गया | माँ बाप को भी फर्क़ नहीं पड़ता कि जो गया था, वही आया है कि नहीं|
Replacement coaching replaced their sons and daughters with Engineers engineered in factories.
विभात, नितेश और अभिषेक आज भी जंगल में जंगलियों की तरह रहते हैं |
सभ्यता जब इतनी सभ्य हो जाए तो जंगली हो जाना ही रास्ता बचता है |
नितेश ने एक दिन पूछा... क्या सब वापस से ठीक नहीं हो सकता?
विभात और अभिषेक हँसने लगे | ज़ोर से, पागलों की तरह | दो हँसी में तीसरी भी मिल गयी | नितेश भी हँसने लगा | तीन ही पागल, तीन ही इंसान बाकी बचे थे | उम्मीद भी इनके ही भीतर ज़िन्दा थी, नाउम्मीदी थी | दीवाली भी, ईदी भी |
विभात वे कहा, कहानी लिखने वाला जाने |
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